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रेगिस्तान की रेत में छुपा इश्क़ | एक अरब शहज़ादी और भारतीय ड्राइवर की प्रेम कहानी


 

"रेगिस्तान की रेत में छुपा इश्क़"

(एक अनकही प्रेम कहानी)

दुबई की तपती दोपहरें और सोने सी चमकती रेत के बीच बसा था एक महल — आलीशान, रौबदार, और रहस्यमयी। उसी महल में रहती थी शहज़ादी मरियम। खूबसूरत, नर्मदिल और बाकी दुनिया से अलग-थलग, जैसे वो किसी सोने के पिंजरे में कैद हो।

दूसरी तरफ़ था रोहन, एक सीधा-सादा भारतीय युवक, जो किस्मत से उस महल में ड्राइवर की नौकरी पा गया था। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उसका दिल उसी लड़की के लिए धड़कने लगेगा, जिसकी झलक पाना भी आम आदमी का ख्वाब होता है।

पहली मुलाक़ात

मरियम को अकेले गाड़ी में सफर करना पसंद था — और उसे हमेशा रोहन ही ड्राइव करता। पहली बार जब वो रोहन की आँखों में झांकी, उसे किसी बादशाह की नहीं, बल्कि एक इंसान की सच्ची झलक दिखी। रोहन की खामोश अदाएं, उसकी अदब से भरी बातें और साफ़ नज़रें — मरियम का दिल धीरे-धीरे उस ओर खिंचता चला गया।



दिल की बातें, गाड़ी की पिछली सीट पर

वक़्त बीतता गया। महल से दूर, जब गाड़ी रेगिस्तान की राहों पर होती, वहीं मरियम खुलकर हँसती, बातें करती, गुनगुनाती। और एक दिन, उसी गाड़ी की पिछली सीट पर, जहां कभी सिर्फ़ सन्नाटा होता था — अब सांसें तेज़ चलने लगीं।

"रोहन, तुम कभी मुझे सिर्फ़ एक शहज़ादी की तरह मत देखना... मैं भी एक लड़की हूँ, जो सिर्फ़ चाही जाना चाहती है," उसने फुसफुसाकर कहा।

रोहन की उंगलियों ने काँपते हुए मरियम के हाथों को छुआ — और वो स्पर्श मानो किसी तूफ़ान की शुरुआत थी।

छुप-छुपकर मिलने का सिलसिला

अब हर सफर, एक बहाना बन गया मिलने का। वो गाड़ी अब सिर्फ़ एक वाहन नहीं रही, वो उनकी दुनिया बन गई। रेगिस्तान के किसी सुनसान मोड़ पर, गाड़ी रोक दी जाती, खिड़कियाँ चढ़ा दी जातीं — और भीतर सिर्फ़ मोहब्बत की रेशमी आहटें होतीं।

उनके बीच की दूरी मिट चुकी थी — जिस्म भी, और दिल भी। गाड़ी की पिछली सीट अब उनकी यादों की सबसे नर्म जगह बन चुकी थी।



लेकिन हर इश्क़ की कीमत होती है...

शहज़ादी का दिल जीतना आसान नहीं था। एक दिन किसी महल के नौकर ने उन्हें साथ देखा और बात शेख तक पहुँच गई। महल में तूफ़ान आ गया। मरियम को कमरे में बंद कर दिया गया, और रोहन को देश छोड़ने का हुक्म मिल गया।

पर इश्क़ कहाँ हार मानता है?

मरियम ने सब कुछ छोड़ने की कसम खा ली — और एक रात, जब सब सो रहे थे, वो उसी गाड़ी की पिछली सीट पर वापस लौटी। रोहन वहीं इंतज़ार कर रहा था। बिना कुछ कहे, उसने हाथ बढ़ाया।

“चलो मरियम... जहाँ सिर्फ़ हमारा प्यार होगा... ना कोई महल, ना कोई बंधन।”

और फिर गाड़ी धीरे-धीरे रेत पर चलती गई... दूर... बहुत दूर...


इस कहानी का मकसद है एक फिक्शनल लव स्टोरी दिखाना — जिसमें जज़्बात, बगावत और इंसानी दिल की सच्चाई हो।
अगर आप चाहें, मैं इसका अगला पार्ट भी लिख सकता हूँ — जैसे कि वो भारत आते हैं, शादी करते हैं 

बताइए, अगला भाग चाहिए क्या?

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