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"राजा और गुज़रे वक्त की चिट्ठी"

🦚 कहानी: "राजा और गुज़रे वक्त की चिट्ठी"

प्रस्तावना

पुराने ज़माने की बात है। हिमगिरी पर्वतों के बीच बसा एक राज्य था — “शांतलोक”। यहाँ का राजा धीरेंद्र अपनी बुद्धिमानी और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन एक बात उसे हमेशा बेचैन करती थी — "आदमी की ज़िंदगी में सबसे बड़ी ताक़त क्या है? भाग्य, बुद्धि या अनुभव?"

राजा ने कई बार सभाओं में यह प्रश्न उठाया, लेकिन कोई उत्तर नहीं दे पाया। एक दिन दरबार में अचानक एक साधु आया, जिसके हाथ में एक पुरानी सी चिट्ठी थी।


चिट्ठी का रहस्य

साधु बोला, "राजन, यह चिट्ठी आपके पूर्वजों में से किसी ने आपके लिए छोड़ी थी। इसे केवल तब खोलना जब आप खुद को सबसे असहाय और टूट चुका महसूस करें।"

राजा ने चिट्ठी ली, लेकिन उसपर धूल चढ़ी थी और शब्द मिट चुके थे। उसने उसे एक लोहे के संदूक में रखवा दिया और सालों तक वह वहीं पड़ी रही।


कहानी का मोड़

समय बीतता गया। राजा का बेटा राजकुमार अर्णव बड़ा हुआ — तेज़, बहादुर और थोड़ा अहंकारी भी। उसने एक दिन कहा, "पिता, अब मुझे युद्ध में जाने दें, मुझे अपना भाग्य खुद लिखना है।"

राजा ने रोका नहीं। अर्णव सीमा पर एक दुश्मन राज्य से टकरा गया — लेकिन बुद्धि से नहीं, बल से। युद्ध में अर्णव को कैद कर लिया गया

राजा टूट गया।

राज्य में विद्रोह फैल गया, जनता भूखी थी, खजाना खाली, सेना हारी हुई और उसका बेटा एक बंदी।

वो दिन था, जब उसने साधु की दी हुई चिट्ठी निकलवाई।


चिट्ठी का संदेश

धड़कते दिल से चिट्ठी खोली — उसमें सिर्फ़ एक पंक्ति लिखी थी:

"यह वक़्त भी गुज़र जाएगा।"

राजा को पहले तो यह वाक्य हल्का लगा। "इतना बड़ा रहस्य सिर्फ़ इतना-सा?"
लेकिन उस रात वह सो न सका। वह वाक्य उसके मन में गूंजता रहा...

सुबह उसने सेना के बचे हुए अधिकारियों को बुलाया और कहा, "हम दुश्मन से नहीं, अपने डर और आलस्य से हारे हैं। आज से राज्य में बदलाव शुरू होगा।"


राजा की बुद्धि और साहस

राजा ने युद्ध की तैयारी नहीं, बल्कि राज्य की व्यवस्था सुधारनी शुरू की। उसने अपने बुद्धिजीवियों, किसानों और लोहारों को इकट्ठा किया। नए हथियार बने, पर परंपरागत नहीं — दिमाग़ से बनाए गए

भोजन भंडारण तकनीकें बदली गईं, सीमाओं पर छलावरण तंत्र बनाए गए।

6 महीने में शांतलोक फिर से खड़ा हो गया।

अब बारी थी राजकुमार को छुड़ाने की। राजा खुद छोटे समूह में सेना लेकर गया और बिना लड़े दुश्मन के सैनिकों को खरीद लिया — बुद्धि और योजना से

राजकुमार वापस आया — शर्मिंदा, पर बदला हुआ।


क्लाइमेक्स: समय का चक्र

समय बदला — फिर एक दशक बीता।

अब राजा बूढ़ा हो चला था। राजकुमार अर्णव गद्दी पर बैठने वाला था। उसी दिन वह चिट्ठी फिर उसके हाथ लगी।

अर्णव ने पूछा: "पिता, यह चिट्ठी जो आपने बचपन में पढ़ी थी, क्या यह सच में इतनी शक्तिशाली थी?"

राजा मुस्कुराया और कहा:

"बेटा, उस चिट्ठी में कोई जादू नहीं था,
पर उस वाक्य ने मुझे 'स्वयं' की याद दिलाई।
यह बताया कि दुख, सुख, हार, जीत — सब समय का खेल है।
जो बुद्धि और धैर्य से सोचता है, वही राजा कहलाता है — भले ही वो फकीर ही क्यों न हो।"

अर्णव की आंखों में चमक आ गई।


अंतिम मोड़ और सीख

कुछ साल बाद जब अर्णव राजा बना, तो उसने उस चिट्ठी की एक हज़ार प्रतियाँ छपवा कर पूरे राज्य में बंटवा दीं।

हर चिट्ठी में सिर्फ़ यही लिखा था:

🔸 "यह वक़्त भी गुज़र जाएगा।
🔸 पर अगर तुमने अपनी बुद्धि, धैर्य और ईमान न खोया —
तो तुम्हारे अच्छे दिन जल्दी आएँगे।"

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